यह वक्तव्य IMHO के steering committee द्वारा पारित किया गया है
एक उग्र राष्ट्रवादी, साम्राज्यवादी नग्न आक्रमण के जरिये रूस के निरंकुश राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (जो KGB के ऑफिसर रह चुके हैं) ने यूक्रेन पर भयावह हमला बोल दिया है.
उक्रेन की सेना, जिनकी संख्या रूस की तुलना में काफी कम है, इस आक्रमण का मुकाबला कर रही है. उक्रेन की सेना के समर्थन में हजारों आम नागरिक शामिल हुए हैं, एवं रूसी आक्रमण के प्रतिरोध में सेना का साथ दे रहे हैं.रूस की मीडिया पर पुतिन का पूर्ण नियंत्रण तथा विरोधिओं का बड़े पैमाने पर दमन के वावजूद रूस के नागरिकों की एक बड़ी संख्या हिम्मत के साथ रास्तों पर उतारकर युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है.युक्रेन पर रूसी हमले के पहले ही दिन अर्थात २४ फरवरी को रूस के 50 से भी अधिक शहरों में युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, एवं ख़बरों के मुताबिक प्रदर्शन में शामिल 1740 रूसी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है.
मार्क्स ने कहा था, जो राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र का उत्पीडन करता है वह खुद अपने लिए जंजीरों का निर्माण करता है. युद्ध के खिलाफ विरोध प्रदर्शनकारी रूसी नागरिक आज शानदार ढंग से इन जंजीरों को तोड़ने का प्रयास कर रहें हैं. पुतिन का आक्रमण न केवल उक्रेन के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का उल्लंघन है—साथ ही उनकी जिंदगी, आवासस्थानों पर सीधा हमला है. यह आक्रमण रूस एवं पश्चिमी देशों के बीच शीत–युद्ध की पुनर्वापसी है. हालांकि NATO के नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे उक्रेन के पक्ष में युद्ध में नहीं उतरेंगे, बल्कि इसके बदले रूस पर आर्थिक पाबंदिया (economic sanctions) लगाएंगे; लेकिन बड़े पैमाने पर तनाव में वृद्धि के वजह से आने वाले दिनों में बड़े संकट का निर्माण होने की संभावना है; किसी भी पक्ष की ओर से एक छोटी सी गलती अथवा गलत अनुमान भी एक भयंकर परिस्थिति पैदा कर सकती है, जिसके परिणाम स्वरुप यह युद्ध एक आणविक युद्ध में तब्दील हो सकती है.
उक्रेन पर हमले के पहले, उन हफ़्तों के दौरान जब दोनों ओर सैनिक तैयारी चल रही थी,पुतिन की प्रमुख मांगे थी कि उक्रेन कभी NATO में शामिल नहीं होगा एवं NATO की सेना रूस की बर्डर के देशों से हटा लिए जायेंगे. यूक्रेन का NATO में शामिल होने की वास्तविक संभावना कम थी क्योंकि सभी जानते थे कि यूक्रेन का यह कदम रूस के लिए लाल लकीर के बराबर है. लेकिन संकट में वृद्धि के साथ साथ, रूस के बॉर्डरों में NATO की सैन्य संख्या कम होने के वजाय और वृद्धि हुई है.ऐसा लगता है कि पुतिन की मांगों के पीछे असली मकसद कुछ और थी: यूक्रेन पर कब्ज़ा करते हुए उसपर अपना वर्चस्व स्थापित करना. लेकिन वास्तव में रूस को सुरक्षित करने के बजाय पुतिन ने रूस एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए नए संकट का निर्माण किया है.
पुतिन ने यह भी दावा किया है कि यूक्रेन पर उनका यह आक्रमण युक्रेन में रूसी भाषा बोलने वालों का नरसंहार रोकने के लिए जरूरी था. अगर इस बात में कोई सच्चाई होती तो इसे रोकने के लिए रूस की ओर से एक सीमित हस्तक्षेप को वाजिव ठहराया जा सकता था.लेकिन, इसके लिए इतनी बड़े पैमाने पर आक्रमण का कोई औचित्व नहीं बनता. असलियत में नरसंहार का दावा पूरी तरह से झुटा था—यह बात सही होते हुए भी कि यूक्रेन की सरकार ने हाल ही में रूसी भाषा के खिलाफ एक कानून बनाया है, जिसके तहत यूक्रेनी भाषा में तर्जमा किये बगैर रूसी भाषा में कोई भी प्रकाशन गैर–कानूनी माना जायेगा.
रूसी साम्राज्यवाद की हमारी निंदा का अर्थ NATO का समर्थन करना नही है. NATO के दो सदस्य अमरीका एवं ब्रिटेन ने 2003 में इराक पर ऐसे ही झूठे मनगढ़ंत बहाना बनाकर हमला किया था. तुर्की, जो NATO का सदस्य है रूस की तुलना में किसी भी माने कम तानाशाह नहीं है. US, UK, EU एवं उनके सहयोगी देशों ने फिलिस्तीनियों एवं कुर्दों को आत्म–निर्णय के अधिकार से वंचित रखा है एवं आज विश्व के एक बड़े हिस्से में इनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष साम्राज्यवादी प्रभुत्व कायम है.
यूक्रेन के आत्म–निर्णय के अधिकार (जिसके अंतर्गत रूस किंवा किसी बाहरी ताकत से अलग होने का अधिकार शामिल है) को समर्थन देने का अर्थ मौजूदा पूंजीवादी यूक्रेनी शासक वर्ग को समर्थन देना भी नहीं है. हम इस तथ्य की ओर ध्यान खींचना चाहेंगे कि रूसी आधिपत्य के खिलाफ प्रतिरोध एवं एक जनवादी गणतंत्र के प्रति समर्थन के केंद्र में आज यूक्रेन का मजदूरवर्ग शामिल है.
जब पुतिन यूक्रेन पर हमले की तैयारी में जुटे थे, इंडियन ओसियन में एक छोटा सा ड्रामा अभिनीत हो रही थी.एक छोटा सा द्वीप मरिसस जो पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था, अपने अधिकारसंपन्न जलयान को सुदूरवर्ती चौगोस द्वीप समूह में भेजकर वहां अपना झंडा लहरा दिया. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के निर्देश तथा UN के निर्णय के बावजूद ब्रिटेन आज भी इन द्वीपसमूह पर ब्रिटिश इंडियन ओसियन टेरिटरी (British Indian Ocean Territory) के रूप में शासन कर रहा है —सिर्फ इसलिए कि डिएगो गार्सिया में अमरीकी सैनिक अड्डा बने रहे. 50 साल पहले जब इन द्वीपों की जनसंख्या केवलमात्र करीब 1560 लोगों की थी, उन्हें इन द्वीपों से हटाया गया था. यह लोग आज भी अपने वतन में वापसी के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहें हैं.
वास्तव में रूस एवं पश्चिमी देश एक ही विश्व पूंजीवादी व्यवस्था के अंग हैं,जिसमे सहयोग, प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष,व्यवस्था एवं अराजकता एक दुसरे के साथ जटिल रूप से सम्बद्ध हैं.यह तमाम राष्ट्र धन–दौलत एवं सत्ता के होड़ में लिप्त हैं एवं आर्थिक प्रतिस्पर्धा, कूटनीति, विचारधारा का प्रचार, जासूसी, साइबर हमले एवं शस्त्रों के होड़ के जरिय इंसानों के सोच पर भी नियंत्रण करना चाहते हैं. यह एक ऐसी व्यवस्था है जो मानवसमाज की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती—जैसे शांति बनाये रखना, सभी के लिए खान–पान, निवासस्थान, स्वास्थ सुबिधायें एवं शिक्षण की व्यवस्था. मौजूदा व्यवस्था अधिकांश इंसानों को खुद के जिंदगी पर नियंत्रण से वंचित रखती है.
IMHO हाल ही में ब्रिटेन आधारित संगठन Ukraine Solidarity Campaign यूक्रेन सॉलिडेरिटी कैंपेन (www.ukrainesolidaritycampaign.org) से जुडी है जो यूक्रेन के समाजवादी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताएं, मजदूर तथा जनवादी अधिकारों के लिए संघर्षशील तथा साम्राज्यवादी हस्तक्षेप एवं उग्रराष्ट्रवाद के खिलाफ लड़नेवालों के साथ सम्बन्ध बनाने का प्रयास करती है.ब्रिटेन की यह समिति तमाम समाजवादियों एवं श्रमिक आन्दोलन के संगठनों के साथ मिलजुलकर काम करने का प्रयास करती है, जो अन्य सवालों पर मतभेदों के बावजूद इस कार्य के लिए एकमत हैं.
प्रमुख उद्देश्य है:
- यूक्रेन के स्वतंत्र समाजवादी एवं मजदूर आन्दोलन के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित कर उन्हें समर्थन देना.
- यूक्रेन के लोगों का अपना भविष्य स्वयं निर्धारित करने के अधिकार को समर्थन देना, जो रूसी किंवा पश्चिमी साम्राज्यवाद के हस्तक्षेप से स्वतंत्र हो!
(Translated and distributed by IMHO, Nagpur, India)
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